काला मोती - KALA MOTI
TITLE – KALA MOTI
CATEGORY –
SUSPANCE
<1>
एक सिपाही - पता नहीं
भाई! राजा साहब का न जाने कौनसी बीमारी लग गई कि ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही।
दूसरा
सिपाही - जी जनाब! इतने अच्छे-अच्छे वैध आये लेकिन राजा साहब की बीमारी का कोई तोड़
न दे सका, हूँ....
[तभी द्वारपाल भागता हुआ अंदर आता है]
द्वारपाल
- सिपाही! राजा साहब को सूचित करो कि द्वार पर कोई महात्मा पधारें है, उनका कहना है कि उनके पास राजा साहब की बीमारी का ईलाज है।
सिपाही -
जी द्वारपाल [इतना कहकर सिपाही अंदर चला जाता है]
सिपाही -
महाराज की जय हो।
सिपाही -
हुजूर! द्वार पर एक महात्मा पधारे है। उनका कहना है कि उनके पास आपकी बीमारी का
इलाज़ है।
महारानी
- तो फिर रुके क्यों हो सिपाही? उन्हें जल्दी आदर सहित
अंदर लाइए।
महाराज -
ऐसा ही करिये सिपाही। हाँ... (लम्बी साँस भरता है)
[थोड़ी देर बाद का दृश्य। राजा साहब पलंग पर लेटे है। रानी चिंता में डूबी
हुई-सी महाराज के सिराने पर बैठी हुई है। तभी मंत्री जी उन महात्मा जी के साथ
प्रवेश करते है]
महात्मा -
एक संत का प्रणाम स्वीकार करें राजन!
[राजा उठ के बैठ जाता है, रानी सहारा देती है]
महाराज -
अहो भाग्य हमारे कि आप हमारे महल में पधारे मुनिवर।
महात्मा
- मैंने सुना कि आप काफी दिनों से बीमार अवस्था में पड़े हुये है सो वहीं देखने चला
आया।
महाराज -
क्या बताये मुनिश्रेष्ठ? आप तो अन्तर्यामी हो, सब जानते हो कि कितने वैध आये गये लेकिन किसी से इस बीमारी का इलाज़ ना हो
सका।
महात्मा
- जब सारे वैध हार मान जाते है, तब काला मोती काम आता है
राजन्!
महाराज -
(चौंकते हुये) काला मोती?
महात्मा
- हाँ राजन्! काला मोती। यह एक ऐसा मोती है जिसे छूने मात्र से ही सारे रोग नष्ट
हो जाते है। सभी रोगो का तोड़ है ये काला मोती।
महारानी
- तो बताइये ना गुरुवर! कहाँ और कैसे मिलेगा ये काला मोती? अब मुझसे इनकी ये हालत और नहीं देखी जाती।
महात्मा
- हिम पहाड़ी पर।
महाराज -
हिम पहाड़ी पर? लेकिन......!
महात्मा
- जी राजन्! वहां जाना सहज नहीं है लेकिन अब यही एक मात्र उपाय है आपकी बीमारी का।
मंत्री -
आप चिंता ना करें महाराज! मैं कुछ सिपाहीयों के साथ अभी कूच करता हूँ। आप आज्ञा
दे।
महात्मा
- नहीं मंत्री जी। काला मोती सिर्फ ऐसे ही इंसान को दिखाई देगा जो अविवाहित हो और
उसका राज दरबार से कोई सम्बन्ध ना हो।
महारानी
- (चिंता में) फिर कौन जाएगा काला मोती लेने?
मंत्री -
राज्य की प्रजा में से तो जा सकता है ना महात्मन्!
महात्मा
- हाँ! राज्य की प्रजा में से जा सकता है। लेकिन याद रहे किसी ऐसे वीर को इस काम
के लिए चुनना जिसमें साहस, बल
और विवेक तीनो हो क्योंकि वहां तक का सफर इतना आसान नहीं है।
<2>
इसके बाद
मंत्री जी पूरे राज्य में ढिंढोरा पीटवा देते है कि जो कोई भी इस काम को करेगा उसे
आधा राज्य दिया जाएगा।
लेकिन सभी
लोगों को उस खतरे का पता था जो हिम पहाड़ी के रास्ते में पड़ने वाला था। इसलिये शाम
तक कोई भी नहीं आया।
अब मंत्री जी सहित सभी लोग निराश होने लगे थे कि शायद अब ऐसा कोई नहीं बचा
जो ये भार लेने को तैयार हो।
तभी
अचानक........
एक
सिपाही प्रवेश करता है।
सिपाही -
मंत्री जी की जय हो।
सिपाही -
मंत्री जी द्वार पर एक युवक आया है। उसका कहना है कि वो हिम पहाड़ी पर जाने को
तैयार है।
मंत्री -
(खुश होते हुये) उसे तुरंत आदर सहित अंदर लाया जाये।
[युवक सिपाही के साथ प्रवेश करता है।]
युवक -
मंत्री जी को हर्षराज का प्रणाम।
मंत्री -
कहो युवक! क्या तुम इस काम को करने के लिए तैयार हो।
हर्षराज
- जी हुजूर।
मंत्री -
लेकिन तुम उस खतरे से तो वाकिफ हो ना जो रास्ते में पड़ने वाला है।
हर्षराज
- जी हुजूर। मैं ये सब जानते हुए भी ये खतरा लेने के लिए तैयार हूँ।
मंत्री -
इसकी कोई वजह?
हर्षराज
- हमारे राजा साहब जो प्रजा के लिए करते है, उसके सामने तो ये एक
छोटी-सी भेंट है हुजूर।
मंत्री -
(खुश होते हुये) बहुत खूब युवक।
मंत्री -
आप आज रात यही मेहमान कक्ष में विश्राम किजिये उसके बाद कल सवेरे ही महाराज की
आज्ञा और मुनिवर के परामर्श के अनुसार कूच करना होगा।
हर्षराज
- जो आज्ञा हुजूर।
<3>
अगली
सुबह हर्षराज महाराज की आज्ञा और मुनिवर के परामर्श के अनुसार राजसी घोड़े के साथ
रवाना होता है। साथ ही सुरक्षा के लिए उसे दो तलवारें दी जाती है ताकि संकट आने पर
वो अपने प्राणों की रक्षा कर सके।
अब दोपहर
होने को थी और हर्षराज सवेरे से एक पल रुका तक नहीं। इसलिए उसने सोचा -
"क्यों ना यही कहीं किसी बड़े से पेड़ के नीचे बैठ के थोड़ा आराम किया जाये।
इसी बहाने घोड़े को भी थोड़ा आराम मिलेगा"
तभी उसे
बरगद का एक बड़ा पेड़ दिखाई देता है। उसके चारों और हरी घास फैली हुई थी और पास ही
जलाशय भी था।
हर्षराज
- (मन में) धन्य हो विधाता! इससे बढ़िया जगह और क्या हो सकती है।
इसके बाद
हर्षराज पेड़ के निचे उतरकर, घोड़े को चरने के लिए छोड़
देता है और खुद जलाशय से पानी पीकर पेड़ के नीचे आराम करने लगता है।
हर्षराज
- (सोचते हुये) इतने गर्मी के समय में इस पेड़ के नीचे कितनी शीतल हवा आ रही है।
आहह्....
चलो थोड़ा
और आराम कर लिया जाये।
हवा इतनी
शीतल थी कि हर्षराज की कब आँख लग गई, उसे पता ही नहीं चला।
तभी घोड़े की चिंगार के साथ उसकी नींद अचानक टूटती है। जब हर्षराज जगता है तो देखता
है कि कहीं से उसके चारों तरफ पानी ही पानी आ गया है और वो नजदीक ही आता जा रहा
है। घोडा थोड़ा डरा हुआ-सा पेड़ के लग के खड़ा हुआ है। हर्षराज इस गुत्थि को समझ पाता,
उससे पहले वो पानी बढ़ता हुआ उन्हें अपनी चपेट में ले लेता है। पानी
धीरे-धीरे उनके शरीर पर चढता हुआ, गर्दन तक आ पंहुचा।
हर्षराज चाहते हुये भी हाथ नहीं हिला पा रहा था। ऐसा लग रहा था कि मानो वो पानी
नहीं, दलदल हो। अब वो दोनों डूब रहे थे।
<4>
कुछ घंटो बाद.....
हर्षराज
की आँख खुलती है तो वो देखता है कि वो एक आश्रम में है। वो हड़बड़ी में आश्रम से
निकलता है तो देखता है कि एक साधु उसके घोड़े को चने खिला रहा है।
हर्षराज
- आप?
साधु -
(पीछे मुड़के मुस्कराता हुआ) उठ गये वत्स!
हर्षराज
- मैं तो उस.......
साधु -
हाँ! हाँ! मुझे सब पता है। मैंने ही तुम दोनों को वहां से बाहर निकाला है।
साधु -
दरअसल वो एक शैतानी पेड़ था। दोपहर को वहां सभी शैतान बैठक करने आते है। इसलिए उसके
चारों तरफ मायावी पानी का जलाशय बना देते है ताकि कोई आस-पास ना आ सके।
हर्षराज
- मैं यहाँ कब से हूँ मुनिवर?
साधु -
ज्यादा नहीं। बस एक पहर हुआ है। ये आज की ही शाम है।
हर्षराज
- हमारे महाराज काफी दिनों से बीमार है मुनिवर। उनके लिये मुझे काला मोती लेने
जाना है। मैं अब आपसे विदा लेता हूँ महाराज।
साधु -
आप रात को कहाँ जाएँगे? आज रात यही विश्राम किजिये और भोर
होते ही रवाना हो जाना।
हर्षराज
- नहीं महात्मन्! पहले ही काफी बिलम्ब हो गया है। अब और नहीं। आप आज्ञा दे गुरूजी।
साधु -
जैसी आपकी इच्छा वत्स!
इसके बाद
साधु की आज्ञा से हर्षराज वहां से रवाना हो जाता है। अब धीरे-धीरे रात्रि होने लगी
थी लेकिन चंद्रमा आसमान में उजाला किया हुआ था। इसलीये रात में यात्रा करना ज्यादा
कठिन नहीं था।
हर्षराज
को यात्रा करते हुये लगभग आधी रात हो चुकी थी और अब वो आखिरकार उस खतरे के पास
लगभग पहुँच ही गया था जिससे डर कर कोई भी आना नहीं चाहता था।
हर्षराज
- (मन में) आखिरकार युद्ध का पल आ ही गया है। उस दानव से भीड़ने का समय आ ही गया है
जिसके कारण यहाँ आने से सब लोग डरते थे।
<5>
दरअसल इस जगह पर एक विशालकाय दानव रहता था जिसका नाम था - मक्रासुर। मक्रासुर पर्वत जैसा विशाल दानव है जिसके सामने जो भी आता है, उसे पकड़कर खा जाता है। इसकी सूंघने की शक्ति भी काफी मजबूत है। यह गंध सूंघ के ही पहचान जाता है कि आस-पास कोई जानवर है या मनुष्य।
अब हर्षराज इसके क्षेत्र में प्रवेश कर चुका था और मक्रासुर आधी रात को आराम से सोया हुआ था। तभी उसकी नींद टूटती है।
मक्रासुर - (सुंघता हुआ) आहह्...
खुशबू। लगता है काफी दिनों बाद कोई मनुष्य इधर आया है। चलो चलकर स्वादिष्ट नास्ता किया जाये।
थोड़ी देर बाद बड़े-बड़े पेड़ो को उखाड़ता हुआ वो विशालकाय राक्षस हर्षराज के सामने आ खड़ा होता है।
मक्रासुर - हा हा हा....
। काफी दिनों बाद कोई मनुष्य इधर आया है। क्यों बच्चे! आज तेरी मौत इधर तुझे खींच ही लायी।
हर्षराज - मेरी नहीं, आज तेरी मौत आयी है दुष्ट दानव।
मक्रासुर - अच्छा! मच्छर के समान तुच्छ प्राणी। तू मुझे ललकार रहा है।
हर्षराज - एक तुच्छ मच्छर भी विशाल मनुष्य को रोगग्रस्त कर सकता है राक्षसराज।
मक्रासुर - मेरे सामने आने वाले मनुष्यो ने मुझसे सिर्फ अपने प्राणो की भीख मांगी है लेकिन तू बड़ा हटीला प्रतीत होता है। तेरा तो मैं अच्छे से भोजन करूँगा मुर्ख!
हर्षराज - कौन किसका भोजन करता है, ये तो अब युद्ध ही बताएगा।
मक्रासुर - (हँसता हुआ) युद्ध...!
तुझे नीचे से उठा के मुँह में रखने तक को तू युद्ध बोलता है। हा.. हा.. हा..
यह कहकर मक्रासुर अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ता है और उसे अपने हाथ में पकड़कर मुँह तक ले जाता है। इसी दौरान हर्षराज उसके नाक पर अपनी तलवार से वार कर देता है। जिसके कारण मक्रासुर के हाथ से हर्षराज छूट जाता है।
हर्षराज - (सोचते हुये) इसे बल से नहीं, विवेक से ही हराया जा सकता है।
यह सोचकर वह उसे अपने पीछे भगाता है। हर्षराज को पता था की इसे हराना आसान नहीं है, इसलिए वो पहले ही रास्ते में बड़े-बड़े कील लगा आया था और खुद के लिए निकलने के लिए बीच में एक हल्की गली बना दी। चुंकि मक्रासुर के पैर विशाल थे। इसलिए वो अब उन कीलो पर पड़ रहे थे। मक्रासुर उन कीलो पर दौड़ने की बजह से घायल हो कर नीचे गिर पड़ा। इसी बीच हर्षराज अपनी तलवार से उसकी भुजाएं काट देता है। ऐसे ही धीरे-धीरे वो उसका पूरा शरीर काट देता है। आखिरकार मक्रासुर का अंत हुआ, जिसके कारण वहां कोई भी आना नहीं चाहता था।
अब हर्षराज अपना अगला सफर शुरू करता है और सुबह तक हिम पहाड़ी पर पहुँच जाता है। हिम पहाड़ी के अंदर काला मोती एक रहस्यमयी प्रकाश की लौ में जगमगा रहा था।
हर्षराज उस काले मोती को लेकर अपने राज्य ले जाता है। इसके बाद मुनिवर उससे राजा को ठीक करते है। अब हर्षराज मुनिवर के कहने पर उस मोती को वापिस अपनी जगह पर रख आता है।
इसके बाद राजा के वादे के अनुसार उसे आधा राज्य देकर उस राज्य का दूसरा राजा बना दिया जाता है।